भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे में इन्साफ के लिए लम्बे समय से आंदोलन करने वाले चार संगठनों ने आज एक पत्रकार वार्ता में केंद्र तथा प्रदेश सरकारों पर यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल के साथ सांठगांठ जारी रखने का आरोप लगाया |

भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे में इन्साफ के लिए लम्बे समय से आंदोलन करने वाले चार संगठनों ने आज एक पत्रकार वार्ता में केंद्र तथा प्रदेश सरकारों पर यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल के साथ सांठगांठ जारी रखने का आरोप लगाया | अपने आरोप के समर्थन में संगठनो ने सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों से यह बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर) ने एक ऐसे अध्ययन के नतीजों को दबा दिया जिससे कम्पनियों से अतिरिक्त मुआवजा लेने के लिए दायर सुधार याचिका को पृष्ठ किया जा सकता था | इस साल हम लोगों ने NIREH (पर्यवरणीय शोध के लिए राष्ट्रीय संस्थान ) से जो दस्तावेज प्राप्त किए हैं वह यह बताते हैं कि आई.सी.एम.आर ने यह तय किया है कि गैस पीड़ित माताओं के बच्चों में अपीडित माताओं के बच्चों के मुकाबले अधिक जन्मजात विकृतियां बताने वाले एक अध्ययन के नतीजे को प्रकाशित नहीं किया जाएगा, यह कहा भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एन्ड एक्शन की सदस्या रचना ढिंगरा ने ׀दस्तावजों के मुताबिक़ इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डा. रूमा गलगलेकर ने गैस पीड़ित माताओं के 1048 बच्चों में से 9% में जन्मजात विकृतियां पाई जबकि अपीडित माताओं के 1247 बच्चों में 1.3% बच्चे ही विकृति ग्रस्त पाए गए | 48 लाख की लागत से यह अध्ययन जनवरी 2016 से जून 2017 तक चला और इसे दिसंबर 2014 से लेकर जनवरी 2017 तक हुई और 3 साइंटिफिक एडवाइजरी कमिटी (SAC) की बैठकों में स्वीकृति दी गई | इन दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि जब इस अध्ययन के नतीजों को जब दिसम्बर 2017 में SAC की सातवीं बैठक में पेश किया गया तो "सदस्यों ने अध्ययन में इतने ज्यादा जन्मजात विकृति ग्रस्त बच्चे पाए जाने पर हैरानी जताई और आंकड़ों की गुणवत्ता पर कई सवाल किए" जिसके बाद यह तय किया गया कि एक एक्सपर्ट ग्रुप (विशेषज्ञ समूह) के द्वारा आंकड़ों की समीक्षा की जाएगी | एक्सपर्ट ग्रुप की 4 अप्रैल  2018 की बैठक के मिनिट्स के अनुसार "ग्रुप ने इसकी जोरदार सिफारिश की कि यह आंकड़े, अपने अंतरनिहित गड़बड़ियों के कारण इन्हे जनता के बीच नहीं ले जाना चाहिए और किसी भी प्लेटफार्म पर साझा नहीं करना चाहिए" | ग्रुप के 4 एक्सपर्ट्स के अनुसार अध्ययन की "अंतरनिहित गड़बड़ियां" अध्ययन की कार्यप्रणाली, आंकड़ों के सत्यापन और अवलोकन में कमियों की वजह से है | अक्टूबर 2018 में SAC की आठवीं बैठक में सदस्यों ने सहमति जताई कि "क्योंकि अध्ययन में गड़बड़ियां थी इसलिए नतीजे त्रुटिपूर्ण थे और इसलिए उसे सार्वजानिक नहीं करना चाहिए"भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी ने कहा कि गैस पीड़ितों की अगली पीढ़ी पर गैस काण्ड के असर पर पड़ताल के इन दस्तावेजों से वैज्ञानिक और वैज्ञानिक संस्थाओं से भरोसा उठ गया है | अगर अध्ययन की डिजाईन वाकई में गड़बड़ थी तो उसे 2 साल तक वैज्ञानिक सलाहकारों  की 3 बैठकों ने कैसे स्वीकृत कर दिया ? अगर गलतियां हो गई तो उसे जनता से क्यों छुपाना ? और आज तक इस अध्ययन को सही तरीके से करने की कोई योजना क्यों नहीं बनी ?भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष  मोर्चा के अध्यक्ष  नवाब खान ने सूचना के अधिकार से प्राप्त एक अन्य दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि "यह बड़ी विडम्बना की बात है कि गैस काण्ड की वजह से हुई जन्मजात विकृतियों के आंकड़ों को चुपचाप दफ़न करने के 6 महीने बाद गैस काण्ड के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए दायर सुधार याचिका पर बहस करने वाले के सर्वोच्च न्यायालय के वकील ने गैस पीड़ितों की सन्तानो पर गैस काण्ड के असर पर नई दिल्ली की एक बैठक की विशेष रूप से जानकारी चाही" जन्मजात विकृतियों पर शोध के जो दस्तावेज हमें मिले है उनमें कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि अध्ययन में जन्मजात विकृतियों के साथ पाए गए 110 बच्चों की मदद के लिए क्या किया गया | हमारे पास 1994 /95 के दस्तावेज हैं जो बताते है कि गैस पीड़ितों के 70,000 बच्चों की जांच की गई और उनमे 2435 बच्चों में दिल की जन्मजात विकृतियां पाई गई | दस्तावेज यह बताते है कि इनमे से सिर्फ 18 बच्चों को प्रदेश सरकार से मदद मिली, बाकी बच्चो का क्या हुआ ? आई. सी. एम.आर. और प्रदेश सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए, कहा डाव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे की